सोचिएगा जरूर सोचिएगा देश और समाज के लिए ना सही, अपने और अपने परिवार के लिए सोचिएगा।
✍️ सन्नी कुमार मिश्रा
इस शीर्षक को पढ़ कर अगर आप इस नतीजे पर पहुंच गए कि इस भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ कहीं पर छात्र आंदोलन हुआ होगा या किसी पत्रकार ने अपने कैमरे से सच दिखाने की कोशिश की होगी तो आपका अनुमान शत प्रतिशत सही है। आए दिन ऐसी खबरों को पढ़ कर नजरंदाज कर देते है या कुछ टिप्पणी या एकाध पोस्ट करके आगे बढ़ जाते हैं। यहीं से तो मिलता है किसी भ्रष्ट सिस्टम को मजबूती और उस सिस्टम में शामिल लोगों को मनमानी करने की छूट।
ये खबर भी उन तमाम खबरों की तरह महज एक कहानी बनकर रह जाएगी फिर भी हम अपनी जिम्मेवारी पूरी करते हुए आपको सूचित कर देते है। घटना कल रात की है जब डिजिटल मंच पर उभरती हुई और स्वतंत्र पत्रकारिता के नाम पर जनता के चंदे से संचालित जनता जंक्शन की टीम जनसेवा के उद्देश्य से कंबल बांटने के लिए पीएमसीएच गई थी। इसी क्रम में वहां के लचर व्यवस्था, काम के वक्त सोते कर्मचारी, गंदे शौचालय और बेड के अभाव में जमीन पर सोते लोगों को देख कर उसे अपने कैमरे में कैद करना चाहा, जो एक पत्रकार का कर्तव्य होता है।
यह बात वहां पॉवर के मद में चूर अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों को हजम नहीं हुआ और जनता जंक्शन टीम के लोगों के साथ मारपीट शुरू कर दिया। पुलिस की पिटाई से सभी को चोटें आई, पत्रकार प्रशांत राय के अनुसार उनका हाथ टूट गया। वहां से पुलिस से जान बचा कर टीम के 3 लोग भागने में सफल रहे लेकिन दो साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उन्हें थाने ले जाया गया और वहां उन्हें खुद को बच्चा चोर होने का लिखित घोषणा करने के लिए दबाव बनाया गया।
यहां हम बात पत्रकार और छात्र की नहीं करते है। इन वर्गों में बांट कर हम खुद को आसानी से अलग कर लेते हैं “अरे ये उनके साथ हो रहा इससे हमें क्या ?”
एक पत्रकार भी पत्रकार होने से पहले भारत का नागरिक है। भारत के लोकतंत्र और संविधान ने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार दिया है किसी सार्वजनिक जगह पर जाने , उसके बारे में खोज पूछ करने की।
जो व्यवस्था/ संस्थान हमारे टैक्स के पैसे से चल रही। उसमें शामिल लोगों का वेतन हमारे पैसे से मिलता है अर्थात हमारे पैसे पर चलने वाली व्यवस्था हमें ही कुचल रही और हम तमाशबीन बने हुए है तो गलती उस व्यवस्था,सरकार या इसे चलाने वाले उन मठाधीशों की नहीं, हमारी है। हम इसे है अपनी नियति मान बैठे है। हमारी मानसिक गुलामी ने हमें शिथिल या यूं कहें तो निर्जीव बना दिया है।
सोचिएगा जब यह खुद पर बीते तो किस हाल/ किस मनोस्थिति में होंगे आप, क्या सवाल या उपाय आएंगे आपके मन में?
सोचिएगा जरूर सोचिएगा देश और समाज के लिए ना सही, अपने और अपने परिवार के लिए सोचिएगा।